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Thursday, 31 January 2019

Difference Between Human Brain vs Computer in Hindi

January 31, 2019 0
Difference Between Human Brain vs Computer in Hindi

Human-Brain-vs-Computer


कम्‍प्‍यूटर के बारे में आप जानते ही होंगे की आज के समय में सबसे ज्‍यादा प्रयोग की जाने वाली मशीन है और कहा जाता है कि यह मनुष्‍य से कहीं बढकर है, इसके बिना कोई काम नहीं हो सकता है, हमारे हिसाब से कम्‍प्‍यूटर केवल आपके जरूरत की मशीन है, जिस प्रकार आप हाथ से कोई दीवार या पत्‍थर नहीं तोड़ सकते थे तो आपने हथोड़े को बनाया, उसी प्रकार आपने कुछ जरूरी काम करने के लिये कम्‍प्‍यूटर को बनाया, तो चलिए जानते है की इसकी तुलना हमसे कैसे हो सकती है | 



Difference Between Human Brain vs Computer in Hindi

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रंगों की पहचान के मामले में

जहॉ तक रंगों में अंतर करने की बात है तो मनुष्‍य की ऑख लगभग 1 करोड़ रंगों में अंतर कर लेती है, लेकिन एक 32 बिट का कम्‍प्‍यूटर 1 करोड़ 60 लाख रंगों में अंतर कर लेता है।

गणना करने में

मनुष्‍य इस मामले में कम्‍प्‍यूटर से पीछे हैं, जी हॉ मनुष्‍य का दिमाग 2 या 3 अंकों की गणना बड़े आराम से कर लेता है, लेकिन अगर यही गणना 10 या 12 अंकों की हो तो बहुत अधिक समय लगता है और यदि इसे और बड़ा कर दिया जाये तो आपको लगभग सारा दिन लग जायेगा, लेकिन कम्‍प्‍यूटर इसे कुछ ही सेकेण्‍ड में हल कर देता है। जैसे कि आपका कैलक्‍यूलेटर

चेहरे पहचानने में

कम्‍प्‍यूटर फेस रिकग्निशन तकनीक के माध्‍यम से चेहरे को पहचानने का काम करता है, जिसमें वह चेहरे के कुछ हिस्‍सों को पांइट करता है, जिससे वह बड़े आराम से किसी का भी चेहरा पहचान लेता है, अब यही तकनीक फेसबुक सोशल नेटवर्किग साइट भी यूज कर रही है, लेकिन इंसानी दिमाग इससे भी आगे है, पूरी दुनिया में अरबों लोग रहते हैं और सभी के चेहरे अलग-अलग होते हैं, इंसानी दिमाग इन सभी के चेहरों में अंतर बड़े आराम से कर लेता है, यहॉ तक कि वह केवल ऑखों को देखकर ही व्‍यक्ति की पहचान कर सकता है और यही नहीं अगर दो चेहरों को मिलाकर एक नया चेहरा बना दिया जाये, जैसा कि अक्‍सर न्‍यूज पेपर में आपने देखा होगा, दिमाग उन दोनों चेहरों में अंतर कर उनको भी पहचान लेता है।



वस्‍तुओं की पहचान

आपका दिमाग केवल देखने भर से नमक और चीनी में अंतर कर सकता है, इसके अलावा और भी रोजमर्रा काम आने वाली चीजों के बीच अंतर करने में इंसानी दिमाग माहिर है। हॉलांकि अब गूगल ग्‍लास, जैसी एप्‍लीकेशन हैं जो इमेज स्‍कैन करते चीजों को पहचान सकती है, लेकिन सटीकता से नहीं।

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निर्णय लेने की क्षमता

यहॉ भी इंसानी दिमाग का कोई जबाव नहीं है, आप पल भर में कोई भी निर्णय ले सकते है, जहॉ पर कम्‍प्‍यूटर भी फेल हो जाते हैं, वहॉ इंसानी दिमाग ही विजय प्राप्‍त करता है, जैसे ड्राइविंग करते समय, कोई खेल खेलते समय, (शतरंज, क्रिकेट, बैडमिटंन आदि) और यहॉ तक कि फाइटर प्‍लेन के पायलट तो इससे भी तेज निर्णय लेने के लिये जाने जाते हैं, यहॉ कम्‍प्‍यूटर इंसानी दिमाग से काफी पीछे है।

किसी मशीन को कन्‍ट्रोल के मामले में

जी हॉ कम्‍प्‍यूटर चाहे कितना भी शक्तिशाली और तेज क्‍यों ना हो, है तो एक मशीन ही और मनुष्‍य के दिमाग का इस मामले में भी कोई जबाब नहीं है, फिर चाहे वह घरेलू कम्‍प्‍यूटर हो या किसी स्‍पेसशिप का कन्‍ट्रोल सिस्‍टम, मनुष्‍य का दिमाग सभी को समझ लेता है और ऑपरेट कर लेता है। एक उदाहरण के लिये यदि एक टाइपिस्‍ट जब की-बोर्ड पर टाइपिंग करता है तो वह की-बोर्ड की तरफ देखता भी नहीं है, तो फिर वह बिलकुल सटीक अक्षर कैसे टाइप कर पाता है, यह कमाल भी दिमाग का है, जब आप टाइपिंग का अभ्‍यास करते है, तो दिमाग आपको उॅगलियों से दबने वाले बटन और दूसरे बटनों के दूरी और अक्षर को याद कर लेता है और यही नहीं आप काफी तेजी से टाइप भी कर पाते हैं।

प्रैक्टिकल के मामले में



आपको बता दें कि कम्‍प्‍यूटर केवल वही कार्य कर सकता है जिसके लिये उसे प्रोग्राम किया गया हो, लेकिन अगर उसे अलग कोई काम करना हो तो कम्‍प्‍यूटर उसे नहीं कर पता है, लेकिन इन्‍सानी दिमाग प्रैक्टिकल होता है, वह किसी भी कार्य को करने के लिये कोई ना कोई रास्‍ता खोज ही लेता है, जिसे आप हिंदी भाषा में जुगाड भी कहते हैं, यह अद्वितीय क्षमता केवल और केवल मनुष्‍य के पास ही है।

निरंतर कार्य करने की क्षमता

हमने बहुत जगह पढा है कि कम्‍प्‍यूटर कभी थकता नहीं है, वह निरंतर कार्य कर सकता है और इंसानी दिमाग थक जाता है उसे सोने की आवश्‍यकता होती है। हमने अभी तक कोई ऐसा रोबोट या मशीन नहीं देखी जो बिजली या बैट्ररी के बगैर चल सके या उसे चार्जिग की आवश्‍कता न हो। ऐसा ही मनुष्‍य के दिमाग और शरीर के साथ है, सोते समय भी मनुष्‍य का दिमाग कार्य करता रहता है, जब आप सो रहे होते हैं तब भी आपके मन में विचार आते रहते है, आप सपने देखते रहते हैं और बात रही थकने की तो कम्‍प्‍यूटर में भी हैंग होने की बीमारी होती है।

संग्रह क्षमता

कम्‍प्‍यूटर में आप दुनिया भर के गाने, वीडियो और संग्रहित कर रख सकते हैं, यह क्षमता मनुष्‍य के दिमाग के पास भी होती है, वह आस-पास होने वाली घटनाओं को रिकार्ड करता रहता है, लेकिन गैर जरूरी घटनाये समय से साथ अपने आप डिलीट होती चलती है, जबकि कम्‍प्‍यूटर में आपको इसके लिये स्‍वंय भी उन फाइलों को डिलीट करना पडता है, लेकिन हॉ संग्रह क्षमता में फिर भी कम्‍प्‍यूटर ही आगे है।

अंंत में

इंसानी दिमाग और इंसानी शरीर मिलकर कई सारे काम कर सकते हैं, जो अकेला कम्‍प्‍यूटर कभी नहीं कर सकता है, आप नोट गिन सकते हैं, आप ड्राइव भी कर सकते हैं, आप पढ भी सकते हैं, आप खाना भी पका सकते हैं, आप कैक्‍यूलेशन भी कर सकते हैं, आप कम्‍प्‍यूटर भी चला सकते हैं, जरा सोचिये कम्‍प्‍यूटर को आपने यानि मनुष्‍य ने बनाया है तो फिर वह मनुष्‍य से श्रेष्‍ठ कैसे हो सकता है, हॉ वह एक अच्‍छी मशीन भले ही हो लेकिन एक अच्‍छा इंसान नहीं बन सकता है, यह केवल मशीन है इसे मशीन ही मानिये तथा इसकी मदद से श्रेष्‍ठ कार्य कीजिये और और देश का नाम गर्व से उॅचा कीजिये।




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